
Перевод:
Светлана Савицкая
Твой лик
– дождливый день и сердца крик,
загадка старых окон, песни яркой,
и майская гроза, и снов ледник,
и ветра проводник —
твой лик…
Твой лик
среди походов и интриг —
Исход народов из пустыни жаркой
И чаек над волной в полете миг,
И наслаждения тупик —
твой лик.
Твой лик – судов за океаном пик,
Языческое таинство гадалки,
И вечность концентрирующий сдвиг,
Луны язык –
Твой лик.
Твой лик,
к могуществу богов приник.
Он сделает меня царем вселенной!
Благодаря ему и я достиг
Блаженства напрямик…
Твой лик —
Прозрачный дух
Младенцев и старух —
Луну и солнце соберет в ладонях.
Надменность в сердце бедном похоронит,
Не разрывая круг,
Где наслажденье двух!
Твой неземной волшебный чудный лик —
В любви чарующей, суровой, зримой, вечной!
Божественно-прекрасной, человечной,
он неожиданно воздвиг
сонета штрих.
Как я люблю его, твой лик!
Пусть он уйдет и возвратясь свободным,
Заставит снова трепетать тростник,
И молодости стих.
Твой лик.
06/21/1994
سيعودُ ثانيةً
وإذا صحوتِ مع الصباحِ كما أفاقَ الفلُّ من حُلمٍ —
وغطت وجهكِ النعسانَ
بسمتكِ الأحبُّ إلى الفؤادْ ,
فنظرتِ حولكِ
وانطلقتِ ترددين اسمي
كألفاظ الصلاةْ ,
وتنقِّلينَ الطرفَ عصفوراً
يرفرفُ بين مخدعنا ,
وشرفتنا التي أودى الصقيعُ بزهرها ,
وإذا حملتِ إلى الفراشِ
كما عهدتُكِ –
قهوة الصُبحِ الشذيّةْ
ووضعت فنجانينِ فوق الطاولةْ ,
ومضيتِ تنتظرينَ ,
فامتلأتْ بأعقاب الأماني الخضرِ
منفضةُ الرمادْ ,
وإذا تنكّرَ صاحبٌ للعهدِ ,
خانتْ ذكرياتِ الأمسِ خلتُكِ الوحيدةْ ,
وإذا استمرّتْ في العقوق ,
وزينتْ خديكِ بالدمعاتِ طفلتكِ العنيدة ْ!
وإذا استفزَّتكِ العمادَةُ ,
وانتضى وجه الوكيلِ قناعهُ الأبهى
وبسمتهُ المقيتةْ ,
فأعاد توزيع الدروسِِ على هواه !
وإذا تركتِ المعهدَ الخاوي ,
وقد بدأتْ تحطُّ على غصونِ الحورِ
أطيارُ السوادْ ,
الريحُ تنزَعُ عنكِ معطفكِ الأنيقْ ,
والثلجُ يسقطُ فوقَ جسمكِ
مثل حُزنٍ يابسٍ ,
ويطولُ – كالخطبِ البليدةِ – تحتَ رجليكِ
الطريقْ ؛
فلتعلمي أني قريبٌ منكِ ,
أني قابَ أمنيتينِ عنكِ ,
وأنَ أنفاسي تُحيطُكِ مثلما كانتْ
وأني ما هجرتكِ طائعاً …..
قولي لهم : «سيعودُ ثانيةً ؛
كما عادتْ سفينةُ سيدِ الإغريقْ ,
قبلَ انتهاءِ الثوبِ بينَ يديَّ «.
قولي :» سوفَ تحملُهُُ البلادُ
إلى بلادْ
هو سندبادْ
أبداً يطوّفُ في جهاتِ الأرضِ
ثُمَّ يعودُ مسكوناً بنخلٍ سامِقٍ
وبشرفةٍ تغفو على كتفِ الفراتْ «.
حلب 31 / 7 / 1994
شكراً لها